माता-पिता का स्नेह और संतान की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला जितिया व्रत हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत खासतौर पर पुत्रवती महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु, सुख और समृद्धि के लिए रखती हैं। जितिया व्रत आश्विन माह की अष्टमी तिथि को रखा जाता है, जो इस बार 2024 में बेहद शुभ मानी जा रही है। इस लेख के माध्यम से जानें Jitiya Vrat 2024 में कब है (Jitiya 2024 date) और क्या है इसका महत्व।
जितिया व्रत की कथा राजा जीमूतवाहन के बलिदान और उनकी करुणा की कहानी है। यह कथा बताती है कि किस प्रकार जीमूतवाहन ने अपने प्राणों की आहुति देकर माता श्यामा के पुत्रों की रक्षा की थी। जीमूतवाहन का त्याग और बलिदान आज भी आदर्श माना जाता है, और माताएं उसी आदर्श के अनुसार इस व्रत का पालन करती हैं।
Jitiya 2024 का शुभारंभ आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से होगा। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और अपने पुत्रों की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
Jitiya Vrat का मुख्य उद्देश्य संतान की रक्षा और लंबी उम्र की कामना करना है। पुराणों के अनुसार, जीमूतवाहन नामक राजा ने अपने त्याग और बलिदान से माता श्यामा को संतान रक्षक के रूप में प्राप्त किया था। तभी से माताएं अपने बच्चों की दीर्घायु और कल्याण के लिए इस व्रत का पालन करती हैं।
व्रत रखने वाली महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं, जो कि नागों के देवता माने जाते हैं। यह व्रत खासतौर पर बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है।
जितिया व्रत की पूजा विधि बेहद सरल और प्रभावी है। इसे विधिपूर्वक करने से संतान की सुरक्षा और उसकी समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करने के लिए महिलाएं उपवास करती हैं और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं।
– पूजा की तैयारी: पूजा के दिन महिलाएं सुबह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं। पूजा स्थल को साफ करके वहां पर जीमूतवाहन की प्रतिमा या चित्र की स्थापना की जाती है।
– भगवान जीमूतवाहन की पूजा: महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। पूजा के लिए धूप, दीप, चंदन, फूल, फल, और नैवेद्य का प्रयोग किया जाता है।
– कथा वाचन: पूजा के बाद जितिया व्रत की कथा सुनी जाती है। इस कथा में जीमूतवाहन के त्याग और बलिदान की महिमा का वर्णन होता है।
– व्रत का पालन: व्रती महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान जीमूतवाहन का ध्यान करती हैं।
– पारण: अगले दिन सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन महिलाएं पूजा के बाद व्रत खोलती हैं और भोजन ग्रहण करती हैं।
गंधर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था। वे बहुत उदार और परोपकारी थे। जब उनके पिता वृद्धावस्था में वानप्रस्थ आश्रम में जाने लगे, तो उन्होंने जीमूतवाहन को राजसिंहासन पर बैठा दिया। लेकिन जीमूतवाहन का मन राज-पाट में नहीं लगता था। उन्होंने राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़ दिया और स्वयं वन में अपने पिता की सेवा करने चले गए। वहीं, उनका विवाह मलयवती नामक राजकन्या से हुआ।
एक दिन जब जीमूतवाहन वन में भ्रमण कर रहे थे, तो उन्होंने एक वृद्धा को विलाप करते देखा। उनके पूछने पर वृद्धा ने रोते हुए कहा, “मैं नाग वंश की स्त्री हूँ और मेरा एकमात्र पुत्र है। पक्षीराज गरुड़ के समक्ष नागों ने यह प्रतिज्ञा की है कि प्रतिदिन एक नाग को गरुड़ के भक्षण हेतु भेजा जाएगा। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है।”
जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वासन देते हुए कहा, “चिंता मत करो, मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज उसकी जगह मैं स्वयं अपने आपको लाल कपड़े में ढंककर वध्य-शिला पर लेट जाऊंगा।” ऐसा कहकर जीमूतवाहन ने शंखचूड़ के हाथ से लाल कपड़ा ले लिया और उसे लपेटकर गरुड़ को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट गए।
नियत समय पर गरुड़ आए और लाल कपड़े में ढंके जीमूतवाहन को पंजों में दबोचकर पहाड़ की चोटी पर चले गए। जब उन्होंने देखा कि उनके चंगुल में फंसा प्राणी न तो आंसू बहा रहा है और न ही आह भर रहा है, तो गरुड़जी को बहुत आश्चर्य हुआ। उन्होंने जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने उन्हें पूरी कहानी सुनाई। जीमूतवाहन की बहादुरी और दूसरों की प्राण-रक्षा के लिए स्वयं का बलिदान देने की हिम्मत देखकर गरुड़जी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को जीवनदान दिया और यह भी वचन दिया कि अब वे नागों की बलि नहीं लेंगे। इस प्रकार, जीमूतवाहन के अदम्य साहस के कारण नाग जाति की रक्षा हुई और तभी से संतान की सुरक्षा हेतु जीमूतवाहन की पूजा करने की परंपरा शुरू हुई।
जीवित्पुत्रिका या जितिया व्रत का पालन करने से महिलाओं को संतान सुख, उसकी लंबी आयु और सुरक्षा का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस व्रत को सच्चे मन से करने वाली महिलाओं की संतानें दीर्घायु, स्वस्थ और समृद्ध होती हैं।
– संतान की लंबी आयु: यह व्रत संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। महिलाएं अपने पुत्रों के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने के लिए इस व्रत का पालन करती हैं।
– संतान की सुरक्षा: जितिया व्रत करने से संतान पर आने वाले संकट दूर होते हैं। जीमूतवाहन की कृपा से संतान सुरक्षित रहती है।
– आध्यात्मिक उन्नति: इस व्रत का पालन करने से महिलाओं को मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
Jitiya Vrat 2024 में माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र और उनकी समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। यह व्रत न केवल संतान की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना के लिए किया जाता है, बल्कि इसके पालन से मानसिक और आध्यात्मिक शांति भी मिलती है। जितिया व्रत का महत्व हर वर्ष बढ़ता जा रहा है, और यह माताओं के संकल्प और समर्पण का प्रतीक बन चुका है।
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