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Nirjala Ekadashi 2025: पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति का दिव्य पर्व

Posted On: May 14, 2025

निर्जला एकादशी हिन्दू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण और पुण्यदायक व्रत तिथि है। वर्ष 2025 में यह एकादशी विशेष संयोग के साथ आ रही है। इसे साल की सबसे कठिन और श्रेष्ठ एकादशी माना जाता है, जिसका पालन करने से सभी एकादशियों का फल एक साथ प्राप्त होता है। आइए विस्तार से जानते हैं Nirjala Ekadashi 2025 व्रत की तिथि, महत्व, कथा, विधि और लाभ के बारे में।

Nirjala Ekadashi 2025 के बारे में विस्तार से जानिए।

Nirjala Ekadashi 2025 की तिथि व मुहूर्त:

वर्ष 2025 में Nirjala Ekadashi का व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा। यह व्रत ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को होता है। इस बार एकादशी तिथि:

  • प्रारंभ: 6 जून 2025 को रात्रि 2:15 बजे
  • समापन: 7 जून 2025 को प्रातः 4:47 बजे

शास्त्रों के अनुसार, उदया तिथि को ध्यान में रखते हुए व्रत 6 जून को रखा जाएगा और व्रत का पारण 7 जून को किया जाएगा। पारण का मुहूर्त विशेष महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी समय व्रती व्रत समाप्त कर फलाहार ग्रहण करते हैं।

वैष्णव संप्रदाय के अनुयायी इस व्रत को 7 जून शनिवार को वैष्णव Nirjala Ekadashi के रूप में मानते हैं।

Nirjala Ekadashi का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व:

Nirjala Ekadashi सभी 24 एकादशियों में सबसे कठिन मानी जाती है, क्योंकि इस दिन जल तक का सेवन वर्जित होता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसका पालन तन, मन और आत्मा की शुद्धि के लिए किया जाता है।

इस दिन विशेष रूप से:

  • भगवान विष्णु की पूजा,
  • दान-पुण्य (विशेष रूप से जल, अन्न और वस्त्र का दान),
  • और निर्जल उपवास करने का विधान है।

शास्त्रों में इसे “सर्वपापक्षयकरा एकादशी” कहा गया है, जिसका अर्थ है – यह व्रत सभी पापों का नाश करता है और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।

निर्जला एकादशी की कथा – क्यों कहते हैं इसे भीम एकादशी?

इस व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। पांडवों में भीम ऐसे योद्धा थे जिन्हें भोजन के बिना रहना कठिन लगता था, इसलिए वे अन्य एकादशी व्रतों का पालन नहीं कर पाते थे। उन्होंने महर्षि वेदव्यास से इसका समाधान पूछा।

व्यास जी ने बताया कि जो व्यक्ति वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त करना चाहता है, वह सिर्फ Nirjala Ekadashi का व्रत करे। यह व्रत कठिन जरूर है, लेकिन इसके फल सभी एकादशियों के बराबर होते हैं।

भीम ने इस कठिन व्रत को किया, इसलिए इसे भीम एकादशी भी कहा जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत के नियम और विधि:

इस व्रत को सही विधि से करने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन आवश्यक है:

  1. व्रत से एक दिन पूर्व (दशमी) को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  2. एकादशी के दिन ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और पीले वस्त्र धारण करें।
  3. व्रत का संकल्प लें और भगवान विष्णु की पूजा करें। पूजा में तुलसी दल, पीले पुष्प, पंचामृत और नारायण मंत्र का विशेष महत्व होता है।
  4. पूरा दिन निर्जल उपवास रखें – जल की एक बूंद भी न लें।
  5. दिनभर भगवान विष्णु का स्मरण, जाप और कथा श्रवण करें। रात्रि में भजन-कीर्तन करें।
  6. द्वादशी के दिन शुभ मुहूर्त में व्रत का पारण करें और फलाहार करें।

Nirjala Ekadashi व्रत के लाभ:

इस दिव्य व्रत से व्यक्ति को अनेक आध्यात्मिक और सांसारिक लाभ प्राप्त होते हैं:

  • जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति
  • आत्मा की शुद्धि और मोक्ष की प्राप्ति
  • मन, शरीर और विचारों में संयम की शक्ति
  • भगवान विष्णु की विशेष कृपा
  • वर्षभर की सभी एकादशियों का पुण्यफल एकसाथ

निष्कर्ष

Nirjala Ekadashi 2025, आध्यात्मिक उन्नति और मोक्ष की प्राप्ति के लिए एक उत्तम अवसर है। यदि आप भी इस दिव्य व्रत को रखने का संकल्प ले रहे हैं, तो इसके नियमों का पालन करें और इस लेख को अपने प्रियजनों के साथ जरूर साझा करें, ताकि वे भी इस पुण्य का लाभ उठा सकें। और अधिक जानकारी के लिए Jyotish Ratan Kendra से संपर्क करे।

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