कई व्यक्तियों को पंचामृत और चरणामृत के बीच अंतर करने में कठिनाई होती है, भले ही वे धार्मिक प्रथाओं में सक्रिय रूप से शामिल हों। पंचामृत एक प्रकार का खाद्य प्रसाद है, जबकि चरणामृत उस पानी को संदर्भित करता है जो भगवान के चरण धोकर बनाया जाता हैं। भक्त किसी भी देवता की पूजा के दौरान प्रसाद के रूप में पंचामृत और चरणामृत का उपयोग करते हैं, इसलिए दोनों के बीच के अंतर को समझना आवश्यक हो जाता है। आइए पंचामृत और चरणामृत के अंतर और लाभों का पता लगाएं।
पंचामृत पांच सामग्रियों को मिलाकर तैयार किया जाता है: गाय का दूध, गाय का दही, गाय का घी, चीनी और गंगा जल। पूजा के दौरान पंचामृत को अमृत की तरह चढ़ाया जाता है और भक्तों को प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है। यह कई शारीरिक लाभ प्रदान करता है और देवताओं के अभिषेक के लिए उपयोग किया जाता है। पंचामृत बनाने के लिए इन पांचों सामग्रियों का होना आवश्यक है। साथ ही, इसका सेवन करने से कई तरह की बीमारियों से राहत मिल सकती है।
दूध – दूध को पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि हमारा जीवन दूध की तरह शुद्ध और निष्कलंक होना चाहिए।
दही – पंचामृत में दही का समावेश यह दर्शाता है कि हमें निष्कलंक रहकर सद्गुणों को अपनाना चाहिए और दूसरों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
घी – घी को स्नेह का प्रतीक माना जाता है। इसे पंचामृत में शामिल करने का अर्थ है कि हमारे संबंध सभी के साथ प्रेम और स्नेह से भरे रहें।
शहद – शहद शक्ति का प्रतीक है। इसका अर्थ है कि हमें जीवन में निर्बलता के बजाय शक्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए।
शक्कर – पंचामृत में शक्कर का समावेश यह दर्शाता है कि हम चाहते हैं कि सभी के जीवन में मिठास बनी रहे।
पंचामृत का मतलब है पांच पवित्र सामग्री से निर्मित प्रसाद। इसे बनाने के लिए गाय का दूध, गाय का घी, दही, शहद और चीनी की आवश्यकता होती है। इन सभी सामग्रियों को एक साथ मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, जिसे बाद में प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
चरणामृत भगवान विष्णु के चरणों का जल है। इसमें तुलसी और तिल मिलाकर तांबे के बर्तन में रख दिया जाता है। धार्मिक नियमों के अनुसार चरणामृत हमेशा दाहिने हाथ में लेना चाहिए। किसी भी नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए उसे ग्रहण करने वाले हाथ को सिर के ऊपर से नहीं घुमाना चाहिए।
इसे बनाने के लिए तांबे के बर्तन में तुलसी और तिल को मिलाकर मंदिर में रख दें। तांबे के पात्र में रखने से चरणामृत में तांबे के औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं।
देवी-देवता की पूजा के दौरान पंचामृत और चरणामृत का उपयोग किया जाता है। इन्हें अमृत के समान ग्रहण किया जाता है और इनके कई लाभ होते हैं। दोनों को बनाने और ग्रहण करने के कुछ नियम होते हैं, जिनकी वजह से व्यक्ति का शरीर रोगमुक्त हो सकता है।
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